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Monday 30 September 2013

पति की आत्मकथा


जब मै था अकेला ,
था बड़ा ही अलबेला ,
दोस्तों का था काफिला ,
और मौज मस्ती का था रेला |

तब न होता था सबेरा ,
महफ़िल थी रैन बसेरा ,
पर जब किस्मत का चला फेरा ,
पीछे छुट गया वो डेरा |

दोस्तों से हुआ मै दूर ,
बादशाह से बना मजदुर ,
हुआ मुझसे था एक कसूर ,
शादी का चढ़ा जब सुरूर |

शादी जो मैंने करली ,
मुसीबत से जिंदगी भरली ,
गर्दन भी उसने धरली ,
सुख शांति मेरी हरली |

बंधन था ये अनोखा ,
इसमें थी वो मलिका ,
मुझे सिर्फ चाकरी का मौका ,
कैसा किस्मत ने दिया धोका ?

पालतू बन गया अब जंगल का शेर ,
कंगाल हो गया अब घर का कुबेर ,
गर दोस्तों की महफ़िल में होजाये देर ,
तो अब करनी पड़ती है जहनुम की सेर |

मै बात भी करू तो है वो अत्याचार ,
वो गाली भी दे तो समझू मै प्यार ,
सचमें शादी के बाद जिंदगी है दुश्वार ,
पति बनने के पहले सोचना दो बार |

डॉ सुनील अग्रवाल

4 comments:

vijai said...

Sir Ji,as a comical poetry,it is beautiful.But i do not agree with you!

vijai said...

Sir Ji,as a comical poetry,it is beautiful.But i do not agree with you!

Unknown said...

iTS ONLY A COMICAL POETRY BUT HIDDEN ARE SOME FACTS ALSO ANYHOW THANKS FOR APPRECIATION

Benella Cox said...

Nice experience............