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Friday 4 October 2013

दोस्ती (Friendship)


हर बार एक नयी तस्वीर उभर आती है ,
क्या पता वो मुझसे क्या कहना चाहती है ,
आखो में प्यार और ममता नजर आती है ,
होटों से अपनापन झलकाती है ,
कभी रूठती है कभी मनाती है ,
निशब्द होकर भी वो मुझे समझाती है ,
महबूबा बनकर कभी करीब आती है ,
और न जाने कब मेरे आगोश में समां जाती है ,
जब देखो तब वो मुझ पर हक़ जताती है ,
छोटी छोटी बातो में मेरा मजाक बनाती है ,
उसकी हर आहट से मेरी जिंदगी मुस्कुराती है ,
उससे बिछड़ने के ख्याल से ही आख भर आती है ,
बचपन से बुढ़ापे तक यही साथ निभाती है ,
हर गुजरे हुए पल की ये मीठी याद दिलाती है ,
ये मस्ती और नोकझोक दोनों की सेज सजाती है ,
दुःख दर्द में ये मुझे जीने की राह बताती है ,
ये दबे पैरो से सबके जीवन में आती है ,
इन्द्रधनुष के रंग सजीले जीवन में बिखराती है ,
ये आप सब की ' दोस्ती ' है ,
जो मुझको बहोत लुभाती है |

डॉ सुनील अग्रवाल 

Tuesday 1 October 2013

वृधाश्रम


बढ़ती हुई झुरियो वाले गाल ,
चहरे पर सफ़ेद होते हुए बाल ,
शरीर और कपडे दोनों बेहाल ,
नम आखे इंतजार से हुई लाल |

जिस बेटे पर वो होते थे कुर्बान ,
जिसकी तारीफों में न थकती थी जुबान ,
आज उसी ने किया उस माँ-बाप अपमान ,
छोड़ दिया वृधाश्रम में करने को आराम |

बड़ते हुए लालच ने उसे अँधा बना दिया ,
ऐसोआराम के चाहत ने उसे स्वार्थी बना दिया ,
चलना जिसने सिखाया उन्हें पंगु बना दिया ,
लोरिया जिसने सुनाई उन्हें गूंगा बना दिया |

क्या ख़ुशी मिली तुझे उन्हें भुलाने में ?
क्या पा लिया तूने उन्हें रुलाने में ?
क्यों किया गैर तूने उन्हें ज़माने में ?
क्या डर था कम हो जाती दौलत तेरे खजाने में ?

भुला दिया है तूने माँ के दूध का कर्ज ,
ज्ञात न हो सका तुझे जन्मदाता के प्रति फर्ज ,
ऐसे औलाद से तो औलाद , न हो तो क्या है हर्ज ?
ज्हनुम में भी इसका नाम न हो सके दर्ज |

जिनके बदोलत तूने है पहचान पाया ,
जिस प्यार और ममता को तूने है गवाया ,
जिस अनमोल खजाने को तू तडफता छोड़ आया ,
आज भी तुझे आशीष देने के लिए उन्होंने अपना हाथ उठाया |

डॉ सुनील अग्रवाल 



Monday 30 September 2013

पति की आत्मकथा


जब मै था अकेला ,
था बड़ा ही अलबेला ,
दोस्तों का था काफिला ,
और मौज मस्ती का था रेला |

तब न होता था सबेरा ,
महफ़िल थी रैन बसेरा ,
पर जब किस्मत का चला फेरा ,
पीछे छुट गया वो डेरा |

दोस्तों से हुआ मै दूर ,
बादशाह से बना मजदुर ,
हुआ मुझसे था एक कसूर ,
शादी का चढ़ा जब सुरूर |

शादी जो मैंने करली ,
मुसीबत से जिंदगी भरली ,
गर्दन भी उसने धरली ,
सुख शांति मेरी हरली |

बंधन था ये अनोखा ,
इसमें थी वो मलिका ,
मुझे सिर्फ चाकरी का मौका ,
कैसा किस्मत ने दिया धोका ?

पालतू बन गया अब जंगल का शेर ,
कंगाल हो गया अब घर का कुबेर ,
गर दोस्तों की महफ़िल में होजाये देर ,
तो अब करनी पड़ती है जहनुम की सेर |

मै बात भी करू तो है वो अत्याचार ,
वो गाली भी दे तो समझू मै प्यार ,
सचमें शादी के बाद जिंदगी है दुश्वार ,
पति बनने के पहले सोचना दो बार |

डॉ सुनील अग्रवाल

Wednesday 25 September 2013

आतंकवाद एक समस्या


हर बार चली एक नयी गोली ,
हर बार नयी एक जान गयी ,
और लाल रंग गिरा धरती पर ,
कि मना होली का रॊज पर्व |

हर बार बनी नयी विधवा ,
हर बार बाप ने खोया पुत्र ,
अगिनत अश्रु ढले अनंत पर ,
धुला नहीं वह लाल रंग |

हर बार नीर से भरे दुर्ग ,
जब जब देखा वो नारसहार ,
हर बार करुण एक आह बनी ,
जब सुनी मौत कि नयी कराह |

मिला नहीं किसे पति- पुत्र ,
और निज को नहीं मिला भ्राता ,
और बिछड़ गयी सास से बहु ,
जब भी बहा यह लाल लहू |

हर बार सोचता हु यह प्रश्न ,
क्यों तोड़ रहे वे खुद का अंश ,
हर बार मिला एक ही उत्तर ,
वहा इंसानियत खड़ी बनी निरुत्तर |

दुःख हुआ मुझे जब सोचा में ,
वे रॊज मचाते है उत्पात ,
और हिला रहे है नीव देश कि ,
जब पड़ोसियों से बन रही न बात |

हर बार समझता रहा यह कि ,
कल होगा इस सब का अंत ,
हर बार निराशा हाथ लगी ,
सब भूल खड़े थे धर्मपंत |

क्यों उनकी बाते करू याद ,
और होता रहू इस तरह त्रस्त ,
जब देख न सकते वे अंधे ,
हो रहा उनकी जाती का अस्त |

डॉ सुनील अग्रवाल 



Friday 20 September 2013

पापा मेरा क्या कसुर ?


आज उन नन्ही कोमल उंगलियों ने मुझे छुआ ,
तब शायद पहेली बार मुझे ये एहसास हुआ ,
वो मांग रही है मुझसे अपने लिए जीने की दुआ ,
और पुछ रही मुझे 'पापा मुझसे क्या कसुर हुआ' ?

तब मेरे होट कपकपाने लगे ,
चक्षु भी नीर बहाने लगे ,
शब्द भी मुह छुपाने लगे ,
कुछ कहने को शब्द कतराने लगे |

उस मासूम का था निश्चल सा चहेरा ,
उसके जिन्दगी का बस हुआ था सबेरा ,
मगर यहाँ पर था छलकपट का पहेरा,
अपने ही चले थे उजाड़ने उसका बसेरा |

माँ के आंचल में छिपके वो दुनिया में आयी ,
बड़े मुश्किल से उसने अपनी जिंदगी बचायी ,
पर क्या सचमे ये दुनिया उसे अपना है पायी ?
फिर कैसे मै दे दू उसे जिन्दगी की दुहाई ?

मन में है चाहत उसे हक़ दू मै सारे ,
भाग्यलक्ष्मी की उपमा से सब उसको वारे ,
लड़कीया कहलाये आखो के तारे ,
तभी सच्चा प्रायश्चित हो पायेगा प्यारे |


डॉ सुनील अग्रवाल 



Wednesday 18 September 2013

गिद्ध और नेता ( मुज़फ्फरनगर की कहानी )


मैंने एक बच्चे से पुछा -
गिद्ध और नेता में अंतर बताओ ?
बच्चे ने थोडा सोचा ,
फिर अपना मुह पोछा ,
और बोला -
गिद्ध मरे हुए प्राणी का मॉस खाता है,
थोड़ी बहुत आहट से डर जाता है ,
जीवित प्राणी को नुकसान नहीं पहुचाता है ,
बदबु से हमें बचाता  है ,
गन्दगी उठाता है ,
बीमारियों से सभी को बचाता है ।

और नेता जो है -
मुज़फ्फरनगर  जैसी जगह में दंगे फैलता है ,
जिन्दा लोगो को मार गिराता है ,
फिर वहा सहानुभुति बताने जाता है ,
घडियाली आसु बहाकर मुआवजा दिलाता है ,
फिर लाशो के अम्बार पर बैठकर ,
वोटो की सौगात खाता है |

जब इससे भी पेट नहीं भर पाता है ,
तब वो संसद भवन चला जाता है ,
वहा जाकर अपना शोक जताता है ,
फिर वहा से नेताओ का झुड लाता है ,
गरीबो को धेला देकरके ,
बाकी सारा पैसा मिलबाटकर खाता है |

इस तरह वो समाज में गन्दगी फैलाता है ,
पुलिस और जनता दोनों को डराता है ,
दुसरो पर सांप्रदायिकता का इल्जाम लगता है ,
और थोड़े ही दिन बाद ये नेता ,
बेशर्मो की तरह वोट मांगने चला आता है |

गिद्ध तो बहुत अच्छे है साहब !
ये तो राक्षसों और सियारों के प्रजाति से आता है |


डॉ सुनिल अग्रवाल










Tuesday 17 September 2013

ऑनर किलिंग

 

मै चाह कर भी न जान सका वो अनजान राहे ,
जहा क्षितिज पे मिलता है आस्मां-धरा से फैला के बाहे ,
दिल में एक अरमा है की उस क्षितिज पर हम चलकर जाये ,
फिर जुदा न कर पायेगा जमाना गर वो चाहे |

वहा अमीर गरीब का बंधन पीछे छूट जायेगा ,
वहा समाज का उच्च नीच हमें जुदा न कर पायेगा ,
वहा पर उगता सूरज हमें और करीब लायेगा ,
और अंधरे का चादर हमारी दुरिया मिटाएगा |

यहाँ पर तो पंचायत माई बाप बन जाता है ,
प्यार को भूलकर नफरत के फरमान सुनाता है ,
औलाद की ख़ुशी से ज्यादा आत्मसम्मान हो जाता है ,
माँ बाप को यहाँ पर तो समाज का डर सताता है |

रिश्ता अपनो से  एक क्षण में टूट जाता है ,
घर का लाडला अब नासूर बन जाता है ,
प्यार का रिश्ता खून से सन जाता है ,
इन्सान अपनी इंसानियत भूल जाता है |

तब मुझे धरा से अम्बर का मिलन याद आता है ,
इस नफरत से भरी दुनिया में क्षितिज मुझे बहुत भाता है |

डॉ सुनील अग्रवाल 




Monday 16 September 2013

नमो नमो प्रधानमंत्री


मोदी का सपना अगर हमें सच कर दिखाना है ,
तो हम सभी को मतदान करने जरूर जाना है ,
मोदी को जिताकर घराने का राजस्व मिटाना है ,
और फिर हमें भारत का खोया सम्मान भी तो वापस लाना है |

मै ये नहीं कहता मोदी एकदम  कुछ कमाल कर देंगा ,
एक रात में ही इस देश का निहाल कर देंगा ,
पर वो देशहित में कुछ ऐसे निर्णय तो लेंगा ,
जो सरकार के मूकबधिर पुतले से बेहतर होगा |

बड़े बड़े अर्थशास्त्री कुर्सी पर होकर विराजमान ,
मैडम की सुनकर करते है पार्टी हित में काम ,
फ़ूड सिक्यूरिटी बिल की वजह से देश चूका रहा दाम ,
रुपैये की खस्ता हालत से देश हुआ बदनाम |

सब जानते है आताकियो का देश में साया है ,
खौफ का माहौल देश के भीतर बाहर छाया है ,
ऐसे में ये शेरदिल इंसान सामने आया है ,
पाक को उसकी औकात दिखाने का मंसूबा बनाया है |

हमारी बहन बेटिया हो सकती है सुरक्षित ,
लव जिहाद से भी हम होजायेगे अलिप्त ,
बल्तकरियो के लिए कड़ी शिक्षा होगी पारित ,
मोदी को पियम बनाने में ही है देश का हित |

मॉडल के तौर पर गुजरात है सामने ,
इस आदमी की विकासशीलता को पहचानने ,
लांछन लगाते है  कुछ दल लोगो के सामने ,
दरअसल उन्हें अपनी कुर्सी जाती नजर आ रही
नमो के लोकप्रियता के सामने |

चलो किसी पार्टी ने अब ये कदम उठाया है ,
राजघराने का वर्चस्व मिटाने उसे लाया है ,
अब हम लोगो को भी मन बनाना है ,
देश में प्रगति के लिए नमो को
प्रधानमंत्री पद पे चुन के लाना है |

डॉ सुनील अग्रवाल 


Thursday 12 September 2013

महगाई



बड़ा मुश्किल है इसे सम्भालना ,
इससे भी कठिन है इसपे काबू पाना ,
सरकार भी भरने वाली है अब हर्जाना ,
इसे रोक नहीं तो मुह की खानी पड़ेगी समझ जाना |

आत्महत्या का कारण है ये ,
भुकमरी का कारण है ये ,
कर्जा बढाती है ये ,
सबको रुलाती है ये |

बड़ा मुश्किल है इसके साथ निभाना ,
और भी कठिन है इसका कारण समझ पाना ,
दुर्भर हो गया है अबतो घर चलाना ,
बच्चे बिलबिलाते है , कहा से अन्न लाना ?

ये अमीर और गरीब में फर्क नहीं करती ,
ये किसी की लाचारी की फ़िक्र नहीं करती ,
जहा पर भी जाती है सारी पब्लिक इससे है डरती ,
भैया ! ये 'महगाई' है ये सब का सुख चैन हरती |

डॉ सुनील अग्रवाल 

Saturday 7 September 2013

भ्रष्टाचार


भ्रष्टाचार  एक ऐसा आचार है ,
जिसमे न विचार है , न सदव्यव्हार है |
इसमें से जायेगे तो तुम उस पार है ,
अगर न अपनाओगे तो तुम बेआधर है |

आप किसी ऑफिस में जाओगे ,
और अपना अफसरी नाम बताओगे ,
तो बाहर खड़े चपरासी की हलकी ,
मुस्कान ही पाओगे |
अगर अपने नाम के साथ ,
चाय के पैसे खिसकायेगे ,
तो सलाम के साथ बाबु तक के
दरवाजे खुल जायेगे |

अब आप जब बाबु से ,
अपना काम बतायेगे ,
तो पहले वो मुह बनायेगे ,
पर अगर तुम यहाँ चाय के बजाय ,
दारू के पैसे सरकायेगे ,
तो वो आपको बड़े साहब तक ले जायेगे |

जब वो आपका काम साहब के कान में ,
फुसफुसाकर बहार जायेगे ,
तो साहब को  आप अपनी ओर घूरता पायेगे ,
ऊपर से तो नहीं वो निचे से अंगूठा दिखायेगे ,
अगर आप इस अगुठे का अर्थ समझ जायेगे ,
और यहाँ दारू के बजाय ,
उस अगुठे और उंगलियों के बीच ,
सौ की दस नोट थामयेगे ,
तो उसी समय वो अपने सामने पड़ी घंटी बजायेगे ,
और इस तरह चपरासी को अन्दर बुलायेगे ,
और फिर चाय के साथ कुछ गरम लाने फरमाकर ,
आपके काम में मस्त हो जायेगे |

डॉ. सुनील अग्रवाल

Thursday 5 September 2013

दहेज


आज दहेज ही वरपक्ष की आस है ,
लेकिन वे जानते नहीं ,
वो गरीब वधु का जीतेजी ,
तोडा हुआ मास है |

वधु को जिन्दा जलाने का ,
आज सास में साहस है ,
पर किसीको उस कोमल ह्रदय से ,
निकलती अश्रुधार का एहसास है ?

आज दुनिया में वधुए ,
लक्ष्मिबल पर बट रही ,
और इस दहेज़ के लिए,
गरीब बहु कट रही |

डॉक्टर सुनील अग्रवाल 

Monday 2 September 2013

देश के प्रति नपुंसकता


आज अख़बार में खबर आयी है ,
आसाराम की नपुंसकता की जाच करवाई है ,
रिपोर्ट एकदम सटीक आयी है ,
उन्होंने  इस उम्र में 'महापुरुष' की उपाधि पाई है |

तभी एक सुजाव मेरे जहन में आया ,
मैंने संसद में एक बिल चर्चा के लिए लाया ,
सभी सांसदों की 'देश के प्रति नपुंसकता' की जाच कराये ,
तभी उन्हें टिकट दी जाये |

मेरे विरोध में सभी पक्षोने नारा लगाया ,
तब मैंने उन्हें जाच का मतलब समजाया ,
मै बोल -
पाकिस्तान पहेले दूर से गोलीबारी करता था ,
वो भारत के सरहदों में घुसने डरता था ,
पर अब तो वो आतंकी तांडव करता है ,
जवानों के सर काटने को भी नहीं डरता है |
चीन तो उससे भी आगे है ,
पाकिस्तान को देखकर उसके अरमा भी जागे है ,
उसने तो पहेली ही बार में कब्जे की ठान ली ,
भारत भूमि को अपनी जहागीर मान ली ,
इने देखकर मायंमार (बर्मा) भी आया आगे ,
और बेशर्मी से लगा वो अपना हक़ जताने |
अब तुम ही बताओ जब इतना सब हो रहा ,
हर भारत वासी अपना सब्र खो रहा ,
क्या अब भी तुम्हे सरकार की नपुंसकता का ,
एहसास नहीं हो रहा ?
इसी लिए इस बिल को पारित कराओ ,
अब तो अपना सोया पुरुषार्थ जगाओ ,
वोट की लालच में देश ना बिक्वाओ ,
अब भी वक़्त है प्यारे संभल जाओ ,
नहीं तो पडोसी मुल्क हमपर हावी होगे ,
तब कहा से तुम अपनी पुरुषार्थ की गवाही दोंगे ?

डॉक्टर सुनील अग्रवाल 




Friday 30 August 2013

न आस न राम सिर्फ कोहराम


शर्म से झुका संतो का सर आज ,
इस बापू ने लुटी एक अबला की लाज ,
थु थु कर रहा उसपर सारा समाज ,
पर वो है की बेशर्मी से नहीं आता बाज |

सोच कर भी सिहर जाता है मन ,
ऐसे मुखोटा लगाकर कैसे करता वो सत्संग ,
विडम्बना देखो भारत देश के संग ,
ऐसे पाखंडी के मुख से लोग सुनरहे भजन |

इस उम्र में ऐसा निघ्रुण काम किया ,
कम उम्र में , कौन जाने क्या क्या रास किया ?
साधना का नहीं इसने वासना का पाठ किया ,
न जाने अबतक इसने कितनो को डस लिया |

ऐसे दुराचारी को फासी पर टांग देंगे ,
इस कुकर्मी को बापू का नाम न देंगे ,
आज शर्म से अपने बापू पानी पानी होगे ,
बोल रहे है उतार फेको , इन पाखंडी के चोंगे |

अब भी वक़्त है लोगो सुधर जाओ ,
ऐसे बाबाओ के षड़यंत्र में न आओ ,
ये कैसे किसीका भला कर सकते है बताओ ,
इनके तो "मुह में राम बगल में छुरी" है समझ जाओ |


डॉक्टर सुनील अग्रवाल 

Wednesday 28 August 2013

जिंदा लाश


उठ के देखा सुबह तो ,
    खिली एक कलि थी ,
भवरे कुछ गुनगुनाते ,
    पर गुमसुम बावली थी ,
बनके भवरा मै एक ,
    चल पड़ा उसके पास ,
लगा पूछने उससे ,
    उसकी बेहालगी क्यों ?

फफकर वो रोई ,
    नयना आसु पिरोई ,
कहने लगी बोल ऐसे ,
    वो कुछ अनमनी सी ,
हुआ थक्क सुनकर ,
    मै खुद सिसकाया ,
फिर देखा गगन को ,
    कहा इसे क्यों बनाया ,
न देखा है यॊवन ,
    अभी यह अधूरी ,
पर फिर भी मधु इसकी ,
    भवरे ने चुराई ,
शर्म के वजह से ,
    यह मुह ना दिखाई ,
भोर हो चली ,
    फिर भी यह रही कुमलाई |

और देखा बेबस इसे ,
    तो भवरे आए अनेक ,
कुछ एक ने छेड़ा ,
    किसी ने ताने दिए फेक ,
दुर्गो में नीर ,
    उर में रोती हुई पीर ,
फिर भी चुप थी ,
    वो अपनी लाचारगी पर |

मैंने सोचा बहोत ,
    पर समझ कुछ न आया ,
जिसे कुछ ने उत्ताडा ,
    उसके कपड़ो को फाड़ा ,
उसे ही समाज ने ,
    लज्जा से गाडा ,
उसे ही सताया ,
    उसे गुंगा बनाया ,
और किस बेदर्दी से ,
    उसे जिन्दा लाश में सजाया |

डॉक्टर सुनील अग्रवाल

रूपया और डॉलर


रूपया और डॉलर की हो गयी लड़ाई,
डॉलर ने गुस्से में अपनी कीमत बड़ाई,
इस वजह से भारत की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाई,
ये सब देखकर रुपये की आख भर आई ,
वो निकल पड़ा डॉलर को मनाने,
भारत से अमेरिका जाने |

रास्ते में उसके संसद भवन आया,
वहा उसने काफी शोरगुल पाया,
वो वहा दो घडी ठहर गया ,
अन्दर  की बहस सुनकर वो सिहर गया |

एक बोला -
सरकार की नीतिया पूरी खोखली है,
विदेशी कंपनी भारत लुटने अब मोकली है,
इसी के लिए रूपया गिर रहा है,
और आर्थिक बोझ के निचे गरीब मर रहा है |

दूसरा बोला -
शेयर बाज़ार अब मुह की खा रहा है,
विदेशी निवेशक घबरा रहा है,
उसे सरकार की काबिलियत पर भरोसा नहीं है,
इसलिए अपने डॉलर के साथ वापस जा रहा है |

तीसरा बोला -
खाद्य सुरक्षा बिल का है कमाल,
वोट बटोरने, द्रॊपति सा किया देश का हाल,
इस बिल से लोगो को निठल्ला बनाने की है चाल,
देश का उत्पादन बंद करनेका बूना है जाल |
बाद में ये विदेशी आयत में कमीशन खायेगी,
आर्थिक स्थिती सुधारने नए टैक्स लगाएगी ,
भारत के लोगो को खून के आसु रुलाएगी ,
अपनी तिजोरी भरके मैडम विदेश चली जायेगी |

ये सब सुनकर रूपया भोचक्का रह गया ,
डॉलर को मनाने का मंसूबा ढेर हो गया ,
अब उसे अपनी स्थिति खुद सुधारना  था ,
'सरकार' रूपी दीमक से भी तो निजाद पाना था |

                               डॉक्टर सुनील अग्रवाल 



Tuesday 27 August 2013

डॉक्टर - दॊस्त या दुश्मन

डॉक्टर - दॊस्त या दुश्मन

माँ के हाथो के पहले जिसने हमें छुआ ,
पीठ थपथपाकर दी ज़िदगी की दुवा,
आज उन्ही हाथो को लोगो ने बदनाम किया ,
तब मेरी अंतरात्मा ने रोकर मुझसे कहा -
जिसे दिया था तुने भगवान का दर्जा,
कहा था कभी उतार पाएगा ना कर्जा ,
आज उसी को तू कोर्ट में खड़ा कर रहा,
उसी के सिर तू कसाई होने का इल्जाम मड रहा ,
ऐसे में तो भगवान भी तुझ से डर जायेगा ,
फिर अड़चन में तेरी मदत करने कौन आयेगा ?
इतना एहसान फरामोस ना बन इसान ,
दोस्त और दुश्मन की तू रख पहचान ,
इस तरह पवित्र पेशे का ना कर अपमान ,
नहीं तो इंसान जानवर कहलायेगा ,
रिश्ते नाते सब भूल जायेगा ,
कलियुग की जगह भ्रमयुग आयेगा ,
वहा एक इंसान दुसरे को मार गिराएगा ,
अपने कौम को बचाने अब तू जाग जा ,
और शेखचिल्ली बनकर अपनाही पैर ना कटा |

                                              डॉक्टर सुनील अग्रवाल




Saturday 24 August 2013

यात्रा यानि मस्ती टाइम

 
   

       यात्रा एक सुखद अनुभव है | ये हम पर निर्भर करता है की यात्रा के दौरान हम आपनी खुशिया कैसे बटोरे |  हर जगह अपने आप में मनमोहक होती है और खासकर  छुटटीया बिताने के लिए तो सभी अपने आप में खुबसूरत और लुभावनी होती है ,  पर फिर भी सभी के दिल को ख़ुशी से सरोबोर करना चाहते हो तो कुछ बातो का ध्यान रखना  जरुरी होता है |
       छुटटीया आप किसके साथ बिता रहे हो ये बात आपका गनतव्य निर्धारित करने के लिए जरुरी होता है , जैसे की अगर आप के साथ बच्चे या बुजुर्ग है तो इस बात का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है की छोटे बोर ना हो और उम्रदराज व्यक्तियों को सेहत या घुमने फिरने में दिक्कत ना हो | 
      इसके बाद जो भी घुमने जा रहे है उन सभी का आपस में बराबर का तालमेल हो, पसंद मिलतीजुलती हो ताकि समन्वय बनाये रकने में आसानी होगी अगर सान्शिपत में कहु तो ' Birds of same feather flock together'.  सबकी आर्थिक परिस्थिति का भी उचित ध्यान  रखा जाए तो यात्रा का मजा दुगना हो जायेगा, हा इसके लिए सभी को थोडा थोडा एडजस्ट करना पड़ता है |
      एक बार जगह और हमसफ़र हमने तय कर लिए तो बस अब तयारिया शुरू कर देनी चाहिये जैसे की दवाइया, थोडा बहोत खानेपीने का सामान, यात्रा की टिकेट, आइडेंटिटी कार्ड , रोजमर्जा की चीजे, इत्त्यादी | सबसे जयादा जरुरी बात है हम अपने कारोबार के टेंशन को साथ न ले जाये अगर ऐसा नहीं किया तो आप तो परेशान रहगे ही पर सहचारी भी खीज जायगे |
      प्रकृति किसे अच्छी नहीं लगती अगर मुझे अपने परिजनों एवं मित्रो के साथ जाने को कहा जाये तो में भारत  का जन्नत यानि की कश्मीर भ्रमण करना चाहुगा | वहा सुन्दरता हर वक़्त अपने चरम सीमा पर होती है, बर्फ से लदे पर्वत, नदियों में बहता शुभ्र जल, हरयाली से आच्छादित कोसो फैले मैदान, लुभावना मौसम ऐसा लगता है जैसे किसी स्वर्गलोक में हम विचरण कर रहे हो | यहाँ पर सभी उम्र के व्यक्ति आनंद उठा सकते है | यहाँ की गंडोला सहर अपने आप में एक अलग अनुभूति है, दुनिया का सबसे उचे गंडोला में बैठकर आसमान छुने का एहसास होता है | अंत में मै इतना ही कहना चाहुगा -  http://www.yatra.com/ 

 मस्ती के वो दिन थे,
             मॊज भरी वो राते,
    सफ़र की शुरुआत थी,
                        अब होगी नयी मुलाकाते |
                भुला चूका था रॊज का दुखड़ा,
                       दिनचर्या का रोता मुखड़ा,
                  अब नहीं था मुझको कोई टेंशन,
                     चार दिन का था ये पेंशन,
         हँसी खुशी से इसे बिताये,
                       आओ हम सब मजे उडाए | 


Friday 23 August 2013

Modern Healthcare is add on to your skill

I am from a very small place called Yavatmal, even though it is district place but it is known for the maximum number of farmer suicide. Most of the Population is Adivasi , and we were lacking in the proper medical care. The life was worse on the holidays and festivals when any medical emergency would succumb due to lack of availability of doctor. There was not a single hospital which used to cater services after 9.00pm in night. At that time I was also a practicing surgeon in Yavatmal. I was running a 20 bedded nursing home. Everytime I was haunted by the thought of not giving timely help to needy patients who used to knock my door in the odd hours and this used to bother me a lot , but there was always a limitation of individual doctor providing services and to overcome this issue I had to think differently. So I decided to go ahead  first by agglomerating all services under one roof with help of my other professional colleague and a step towards modernization of Healthcare services.
Modernization doesn't only mean addition of new gadgets but it means proper care timely imparted to patient  which will be helpful to save his life. To stick on to the first two principle of modernization i.e proper care in proper time it was necessary that round the clock some specialist in his own field be available with all basic diagnostic facility and life saving gadgets. So we started our venture Sanjeevan Multispeciality Hospital & Research Institute with mission " Save life with Love and Care".
After the start of this new hospital I have closely seen how the modernization in healthcare helps to save precious human life which can never be regained once that golden moment is lost. Many people has misconception that in such hospital unnecessary investigations are done to retrieve money from the patient, but here I thank the availability of modern gadgets which help in timely diagnosis and thus save a life. I would like to site an example previously if any patient of heart attack  used to come we used to diagnose clinically and on basis of ECG which can be negative ( no changes of heart attack) in initial hours with advent of new technology enzymes such as troponin I can be useful which is positive even when the other parameter are normal thus can be helpful in saving human life with proper intervention.
It is quite true that due to modernization the extra cost is to be incurred by the patients but again I would say that 'life is valuable and money is only worth till you are alive'.
Availability of modern techniques has definitely changed the whole scenario, life expectancy which was 40 - 45 years initially has gone up to 65-70 yrs. In my view modernization in healthcare has got both its advantage and disadvantages, let us enumerate few disadvantages- cost of healthcare has gone up, doctors lack touch of humanity due to basic cost involved, CPA has abruptly broken the doctors patient relationship, Hospital are turning into industry with more competitive attitude, more and more facilities are coming up in metro cities rather in other words rural areas are neglected due lack of paying capacity and difficulty in viability of Healthcare Project.
Here I would like to say modern healthcare facility will definitely touch lives if we try to keep low cost of treatment , reach to rural area ( as life is precious whether poor or rich) , first establish basic healthcare infrastructure rather then going in for more advanced version of machinery, get low cost safe transportation facility, etc.
To conclude I would like to say
Your will and your skill are indispensable and modernization is just a add on jewel , let it be useful to increase the beauty but without breaking the bonds of humanity             

Wednesday 21 August 2013

ग़रीबी





मै एक ऐसी कहानी हू,

जो सबकी जानी पहचानी हू,

झुल्फ मेरी उम्मिदो की बनी है,

जो हर हवा के झोके से बिखर जाती है,

बिन्दिया के नाम पर रोज,

लहू के छीटे माथे पर उड़ जाते है,

होटो की लाली की जगह,

भूख की ताज़गी हर समय नज़र आती है,

आखो के झरोको मे,

भय और आतंक का तांडव दिखाई देता है,

खिलखिलाकर आती हसी की बजाए,

मौन खड़े सन्नाटे की अहाट आती है,

ओडनी के चंद धागो को छोड़कर,

बची हुई लाज गिधो के पंजो मे नज़र आती है,

पक्समो पर बसी हुई झुरिया ही,

मेरी जवानी की बची हुई अमानत है,

सर पर सफेद होते बाल ही,

मेरे बडनेकी निशानी है,

अगर अब भी समझ पाए तो,

कुछ आसू बहा देना,

और इस अभागन को,

ग़रीबी कहकर गले लगा लेनाII I



By-

Dr Sunil Agrawal






Tuesday 20 August 2013

बचपन



जब भी याद आते हो,
   बहूत रुलाते हो तुम,
दूर जाते देखकर भी,
   ना बुलाते हो तुम I
याद नही कितने अज़ीज थे
   हम कभी एक दूसरे के,
अब तो सामने खड़े होकर भी
   भुलाते हो मुझेI
आज भी तुम मुझे-
   कभी खिलोने से दीखाई देते हो,
   कभी मा के दुलार से प्रतीत होते हो,
   कभी आसू की तरह झर जाते हो,
   कभी ज़िद की तरह अड़ जाते हो,
कभी अमराई के झूलो पर झूलते देखा था तुम्हे,
कभी अनभीग्येता और भोलेपन सा निहारा था तुम्हे,
कभी बंदर की सी मस्ती मे पाया था तुम्हे,
कभी हिरनी की सपूर्ती मे जाना था तुम्हे I
पर अब तो सुनहरे सपने की बिखरी हुई शेष
                    किरण हो तुम,
पर जब भी याद आते हो बहूत रुलाते हो तुम,
हाय ! मेरे बचपन के दिन क्यो मुझे भुलाते हो तुम I

By-
Dr Sunil Agrawal