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Saturday 7 September 2013

भ्रष्टाचार


भ्रष्टाचार  एक ऐसा आचार है ,
जिसमे न विचार है , न सदव्यव्हार है |
इसमें से जायेगे तो तुम उस पार है ,
अगर न अपनाओगे तो तुम बेआधर है |

आप किसी ऑफिस में जाओगे ,
और अपना अफसरी नाम बताओगे ,
तो बाहर खड़े चपरासी की हलकी ,
मुस्कान ही पाओगे |
अगर अपने नाम के साथ ,
चाय के पैसे खिसकायेगे ,
तो सलाम के साथ बाबु तक के
दरवाजे खुल जायेगे |

अब आप जब बाबु से ,
अपना काम बतायेगे ,
तो पहले वो मुह बनायेगे ,
पर अगर तुम यहाँ चाय के बजाय ,
दारू के पैसे सरकायेगे ,
तो वो आपको बड़े साहब तक ले जायेगे |

जब वो आपका काम साहब के कान में ,
फुसफुसाकर बहार जायेगे ,
तो साहब को  आप अपनी ओर घूरता पायेगे ,
ऊपर से तो नहीं वो निचे से अंगूठा दिखायेगे ,
अगर आप इस अगुठे का अर्थ समझ जायेगे ,
और यहाँ दारू के बजाय ,
उस अगुठे और उंगलियों के बीच ,
सौ की दस नोट थामयेगे ,
तो उसी समय वो अपने सामने पड़ी घंटी बजायेगे ,
और इस तरह चपरासी को अन्दर बुलायेगे ,
और फिर चाय के साथ कुछ गरम लाने फरमाकर ,
आपके काम में मस्त हो जायेगे |

डॉ. सुनील अग्रवाल

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