indiblogger member

Monday 30 September 2013

पति की आत्मकथा


जब मै था अकेला ,
था बड़ा ही अलबेला ,
दोस्तों का था काफिला ,
और मौज मस्ती का था रेला |

तब न होता था सबेरा ,
महफ़िल थी रैन बसेरा ,
पर जब किस्मत का चला फेरा ,
पीछे छुट गया वो डेरा |

दोस्तों से हुआ मै दूर ,
बादशाह से बना मजदुर ,
हुआ मुझसे था एक कसूर ,
शादी का चढ़ा जब सुरूर |

शादी जो मैंने करली ,
मुसीबत से जिंदगी भरली ,
गर्दन भी उसने धरली ,
सुख शांति मेरी हरली |

बंधन था ये अनोखा ,
इसमें थी वो मलिका ,
मुझे सिर्फ चाकरी का मौका ,
कैसा किस्मत ने दिया धोका ?

पालतू बन गया अब जंगल का शेर ,
कंगाल हो गया अब घर का कुबेर ,
गर दोस्तों की महफ़िल में होजाये देर ,
तो अब करनी पड़ती है जहनुम की सेर |

मै बात भी करू तो है वो अत्याचार ,
वो गाली भी दे तो समझू मै प्यार ,
सचमें शादी के बाद जिंदगी है दुश्वार ,
पति बनने के पहले सोचना दो बार |

डॉ सुनील अग्रवाल

Wednesday 25 September 2013

आतंकवाद एक समस्या


हर बार चली एक नयी गोली ,
हर बार नयी एक जान गयी ,
और लाल रंग गिरा धरती पर ,
कि मना होली का रॊज पर्व |

हर बार बनी नयी विधवा ,
हर बार बाप ने खोया पुत्र ,
अगिनत अश्रु ढले अनंत पर ,
धुला नहीं वह लाल रंग |

हर बार नीर से भरे दुर्ग ,
जब जब देखा वो नारसहार ,
हर बार करुण एक आह बनी ,
जब सुनी मौत कि नयी कराह |

मिला नहीं किसे पति- पुत्र ,
और निज को नहीं मिला भ्राता ,
और बिछड़ गयी सास से बहु ,
जब भी बहा यह लाल लहू |

हर बार सोचता हु यह प्रश्न ,
क्यों तोड़ रहे वे खुद का अंश ,
हर बार मिला एक ही उत्तर ,
वहा इंसानियत खड़ी बनी निरुत्तर |

दुःख हुआ मुझे जब सोचा में ,
वे रॊज मचाते है उत्पात ,
और हिला रहे है नीव देश कि ,
जब पड़ोसियों से बन रही न बात |

हर बार समझता रहा यह कि ,
कल होगा इस सब का अंत ,
हर बार निराशा हाथ लगी ,
सब भूल खड़े थे धर्मपंत |

क्यों उनकी बाते करू याद ,
और होता रहू इस तरह त्रस्त ,
जब देख न सकते वे अंधे ,
हो रहा उनकी जाती का अस्त |

डॉ सुनील अग्रवाल 



Friday 20 September 2013

पापा मेरा क्या कसुर ?


आज उन नन्ही कोमल उंगलियों ने मुझे छुआ ,
तब शायद पहेली बार मुझे ये एहसास हुआ ,
वो मांग रही है मुझसे अपने लिए जीने की दुआ ,
और पुछ रही मुझे 'पापा मुझसे क्या कसुर हुआ' ?

तब मेरे होट कपकपाने लगे ,
चक्षु भी नीर बहाने लगे ,
शब्द भी मुह छुपाने लगे ,
कुछ कहने को शब्द कतराने लगे |

उस मासूम का था निश्चल सा चहेरा ,
उसके जिन्दगी का बस हुआ था सबेरा ,
मगर यहाँ पर था छलकपट का पहेरा,
अपने ही चले थे उजाड़ने उसका बसेरा |

माँ के आंचल में छिपके वो दुनिया में आयी ,
बड़े मुश्किल से उसने अपनी जिंदगी बचायी ,
पर क्या सचमे ये दुनिया उसे अपना है पायी ?
फिर कैसे मै दे दू उसे जिन्दगी की दुहाई ?

मन में है चाहत उसे हक़ दू मै सारे ,
भाग्यलक्ष्मी की उपमा से सब उसको वारे ,
लड़कीया कहलाये आखो के तारे ,
तभी सच्चा प्रायश्चित हो पायेगा प्यारे |


डॉ सुनील अग्रवाल 



Wednesday 18 September 2013

गिद्ध और नेता ( मुज़फ्फरनगर की कहानी )


मैंने एक बच्चे से पुछा -
गिद्ध और नेता में अंतर बताओ ?
बच्चे ने थोडा सोचा ,
फिर अपना मुह पोछा ,
और बोला -
गिद्ध मरे हुए प्राणी का मॉस खाता है,
थोड़ी बहुत आहट से डर जाता है ,
जीवित प्राणी को नुकसान नहीं पहुचाता है ,
बदबु से हमें बचाता  है ,
गन्दगी उठाता है ,
बीमारियों से सभी को बचाता है ।

और नेता जो है -
मुज़फ्फरनगर  जैसी जगह में दंगे फैलता है ,
जिन्दा लोगो को मार गिराता है ,
फिर वहा सहानुभुति बताने जाता है ,
घडियाली आसु बहाकर मुआवजा दिलाता है ,
फिर लाशो के अम्बार पर बैठकर ,
वोटो की सौगात खाता है |

जब इससे भी पेट नहीं भर पाता है ,
तब वो संसद भवन चला जाता है ,
वहा जाकर अपना शोक जताता है ,
फिर वहा से नेताओ का झुड लाता है ,
गरीबो को धेला देकरके ,
बाकी सारा पैसा मिलबाटकर खाता है |

इस तरह वो समाज में गन्दगी फैलाता है ,
पुलिस और जनता दोनों को डराता है ,
दुसरो पर सांप्रदायिकता का इल्जाम लगता है ,
और थोड़े ही दिन बाद ये नेता ,
बेशर्मो की तरह वोट मांगने चला आता है |

गिद्ध तो बहुत अच्छे है साहब !
ये तो राक्षसों और सियारों के प्रजाति से आता है |


डॉ सुनिल अग्रवाल










Tuesday 17 September 2013

ऑनर किलिंग

 

मै चाह कर भी न जान सका वो अनजान राहे ,
जहा क्षितिज पे मिलता है आस्मां-धरा से फैला के बाहे ,
दिल में एक अरमा है की उस क्षितिज पर हम चलकर जाये ,
फिर जुदा न कर पायेगा जमाना गर वो चाहे |

वहा अमीर गरीब का बंधन पीछे छूट जायेगा ,
वहा समाज का उच्च नीच हमें जुदा न कर पायेगा ,
वहा पर उगता सूरज हमें और करीब लायेगा ,
और अंधरे का चादर हमारी दुरिया मिटाएगा |

यहाँ पर तो पंचायत माई बाप बन जाता है ,
प्यार को भूलकर नफरत के फरमान सुनाता है ,
औलाद की ख़ुशी से ज्यादा आत्मसम्मान हो जाता है ,
माँ बाप को यहाँ पर तो समाज का डर सताता है |

रिश्ता अपनो से  एक क्षण में टूट जाता है ,
घर का लाडला अब नासूर बन जाता है ,
प्यार का रिश्ता खून से सन जाता है ,
इन्सान अपनी इंसानियत भूल जाता है |

तब मुझे धरा से अम्बर का मिलन याद आता है ,
इस नफरत से भरी दुनिया में क्षितिज मुझे बहुत भाता है |

डॉ सुनील अग्रवाल 




Monday 16 September 2013

नमो नमो प्रधानमंत्री


मोदी का सपना अगर हमें सच कर दिखाना है ,
तो हम सभी को मतदान करने जरूर जाना है ,
मोदी को जिताकर घराने का राजस्व मिटाना है ,
और फिर हमें भारत का खोया सम्मान भी तो वापस लाना है |

मै ये नहीं कहता मोदी एकदम  कुछ कमाल कर देंगा ,
एक रात में ही इस देश का निहाल कर देंगा ,
पर वो देशहित में कुछ ऐसे निर्णय तो लेंगा ,
जो सरकार के मूकबधिर पुतले से बेहतर होगा |

बड़े बड़े अर्थशास्त्री कुर्सी पर होकर विराजमान ,
मैडम की सुनकर करते है पार्टी हित में काम ,
फ़ूड सिक्यूरिटी बिल की वजह से देश चूका रहा दाम ,
रुपैये की खस्ता हालत से देश हुआ बदनाम |

सब जानते है आताकियो का देश में साया है ,
खौफ का माहौल देश के भीतर बाहर छाया है ,
ऐसे में ये शेरदिल इंसान सामने आया है ,
पाक को उसकी औकात दिखाने का मंसूबा बनाया है |

हमारी बहन बेटिया हो सकती है सुरक्षित ,
लव जिहाद से भी हम होजायेगे अलिप्त ,
बल्तकरियो के लिए कड़ी शिक्षा होगी पारित ,
मोदी को पियम बनाने में ही है देश का हित |

मॉडल के तौर पर गुजरात है सामने ,
इस आदमी की विकासशीलता को पहचानने ,
लांछन लगाते है  कुछ दल लोगो के सामने ,
दरअसल उन्हें अपनी कुर्सी जाती नजर आ रही
नमो के लोकप्रियता के सामने |

चलो किसी पार्टी ने अब ये कदम उठाया है ,
राजघराने का वर्चस्व मिटाने उसे लाया है ,
अब हम लोगो को भी मन बनाना है ,
देश में प्रगति के लिए नमो को
प्रधानमंत्री पद पे चुन के लाना है |

डॉ सुनील अग्रवाल 


Thursday 12 September 2013

महगाई



बड़ा मुश्किल है इसे सम्भालना ,
इससे भी कठिन है इसपे काबू पाना ,
सरकार भी भरने वाली है अब हर्जाना ,
इसे रोक नहीं तो मुह की खानी पड़ेगी समझ जाना |

आत्महत्या का कारण है ये ,
भुकमरी का कारण है ये ,
कर्जा बढाती है ये ,
सबको रुलाती है ये |

बड़ा मुश्किल है इसके साथ निभाना ,
और भी कठिन है इसका कारण समझ पाना ,
दुर्भर हो गया है अबतो घर चलाना ,
बच्चे बिलबिलाते है , कहा से अन्न लाना ?

ये अमीर और गरीब में फर्क नहीं करती ,
ये किसी की लाचारी की फ़िक्र नहीं करती ,
जहा पर भी जाती है सारी पब्लिक इससे है डरती ,
भैया ! ये 'महगाई' है ये सब का सुख चैन हरती |

डॉ सुनील अग्रवाल 

Saturday 7 September 2013

भ्रष्टाचार


भ्रष्टाचार  एक ऐसा आचार है ,
जिसमे न विचार है , न सदव्यव्हार है |
इसमें से जायेगे तो तुम उस पार है ,
अगर न अपनाओगे तो तुम बेआधर है |

आप किसी ऑफिस में जाओगे ,
और अपना अफसरी नाम बताओगे ,
तो बाहर खड़े चपरासी की हलकी ,
मुस्कान ही पाओगे |
अगर अपने नाम के साथ ,
चाय के पैसे खिसकायेगे ,
तो सलाम के साथ बाबु तक के
दरवाजे खुल जायेगे |

अब आप जब बाबु से ,
अपना काम बतायेगे ,
तो पहले वो मुह बनायेगे ,
पर अगर तुम यहाँ चाय के बजाय ,
दारू के पैसे सरकायेगे ,
तो वो आपको बड़े साहब तक ले जायेगे |

जब वो आपका काम साहब के कान में ,
फुसफुसाकर बहार जायेगे ,
तो साहब को  आप अपनी ओर घूरता पायेगे ,
ऊपर से तो नहीं वो निचे से अंगूठा दिखायेगे ,
अगर आप इस अगुठे का अर्थ समझ जायेगे ,
और यहाँ दारू के बजाय ,
उस अगुठे और उंगलियों के बीच ,
सौ की दस नोट थामयेगे ,
तो उसी समय वो अपने सामने पड़ी घंटी बजायेगे ,
और इस तरह चपरासी को अन्दर बुलायेगे ,
और फिर चाय के साथ कुछ गरम लाने फरमाकर ,
आपके काम में मस्त हो जायेगे |

डॉ. सुनील अग्रवाल

Thursday 5 September 2013

दहेज


आज दहेज ही वरपक्ष की आस है ,
लेकिन वे जानते नहीं ,
वो गरीब वधु का जीतेजी ,
तोडा हुआ मास है |

वधु को जिन्दा जलाने का ,
आज सास में साहस है ,
पर किसीको उस कोमल ह्रदय से ,
निकलती अश्रुधार का एहसास है ?

आज दुनिया में वधुए ,
लक्ष्मिबल पर बट रही ,
और इस दहेज़ के लिए,
गरीब बहु कट रही |

डॉक्टर सुनील अग्रवाल 

Monday 2 September 2013

देश के प्रति नपुंसकता


आज अख़बार में खबर आयी है ,
आसाराम की नपुंसकता की जाच करवाई है ,
रिपोर्ट एकदम सटीक आयी है ,
उन्होंने  इस उम्र में 'महापुरुष' की उपाधि पाई है |

तभी एक सुजाव मेरे जहन में आया ,
मैंने संसद में एक बिल चर्चा के लिए लाया ,
सभी सांसदों की 'देश के प्रति नपुंसकता' की जाच कराये ,
तभी उन्हें टिकट दी जाये |

मेरे विरोध में सभी पक्षोने नारा लगाया ,
तब मैंने उन्हें जाच का मतलब समजाया ,
मै बोल -
पाकिस्तान पहेले दूर से गोलीबारी करता था ,
वो भारत के सरहदों में घुसने डरता था ,
पर अब तो वो आतंकी तांडव करता है ,
जवानों के सर काटने को भी नहीं डरता है |
चीन तो उससे भी आगे है ,
पाकिस्तान को देखकर उसके अरमा भी जागे है ,
उसने तो पहेली ही बार में कब्जे की ठान ली ,
भारत भूमि को अपनी जहागीर मान ली ,
इने देखकर मायंमार (बर्मा) भी आया आगे ,
और बेशर्मी से लगा वो अपना हक़ जताने |
अब तुम ही बताओ जब इतना सब हो रहा ,
हर भारत वासी अपना सब्र खो रहा ,
क्या अब भी तुम्हे सरकार की नपुंसकता का ,
एहसास नहीं हो रहा ?
इसी लिए इस बिल को पारित कराओ ,
अब तो अपना सोया पुरुषार्थ जगाओ ,
वोट की लालच में देश ना बिक्वाओ ,
अब भी वक़्त है प्यारे संभल जाओ ,
नहीं तो पडोसी मुल्क हमपर हावी होगे ,
तब कहा से तुम अपनी पुरुषार्थ की गवाही दोंगे ?

डॉक्टर सुनील अग्रवाल