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Friday, 20 September 2013

पापा मेरा क्या कसुर ?


आज उन नन्ही कोमल उंगलियों ने मुझे छुआ ,
तब शायद पहेली बार मुझे ये एहसास हुआ ,
वो मांग रही है मुझसे अपने लिए जीने की दुआ ,
और पुछ रही मुझे 'पापा मुझसे क्या कसुर हुआ' ?

तब मेरे होट कपकपाने लगे ,
चक्षु भी नीर बहाने लगे ,
शब्द भी मुह छुपाने लगे ,
कुछ कहने को शब्द कतराने लगे |

उस मासूम का था निश्चल सा चहेरा ,
उसके जिन्दगी का बस हुआ था सबेरा ,
मगर यहाँ पर था छलकपट का पहेरा,
अपने ही चले थे उजाड़ने उसका बसेरा |

माँ के आंचल में छिपके वो दुनिया में आयी ,
बड़े मुश्किल से उसने अपनी जिंदगी बचायी ,
पर क्या सचमे ये दुनिया उसे अपना है पायी ?
फिर कैसे मै दे दू उसे जिन्दगी की दुहाई ?

मन में है चाहत उसे हक़ दू मै सारे ,
भाग्यलक्ष्मी की उपमा से सब उसको वारे ,
लड़कीया कहलाये आखो के तारे ,
तभी सच्चा प्रायश्चित हो पायेगा प्यारे |


डॉ सुनील अग्रवाल 



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