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Wednesday 18 September 2013

गिद्ध और नेता ( मुज़फ्फरनगर की कहानी )


मैंने एक बच्चे से पुछा -
गिद्ध और नेता में अंतर बताओ ?
बच्चे ने थोडा सोचा ,
फिर अपना मुह पोछा ,
और बोला -
गिद्ध मरे हुए प्राणी का मॉस खाता है,
थोड़ी बहुत आहट से डर जाता है ,
जीवित प्राणी को नुकसान नहीं पहुचाता है ,
बदबु से हमें बचाता  है ,
गन्दगी उठाता है ,
बीमारियों से सभी को बचाता है ।

और नेता जो है -
मुज़फ्फरनगर  जैसी जगह में दंगे फैलता है ,
जिन्दा लोगो को मार गिराता है ,
फिर वहा सहानुभुति बताने जाता है ,
घडियाली आसु बहाकर मुआवजा दिलाता है ,
फिर लाशो के अम्बार पर बैठकर ,
वोटो की सौगात खाता है |

जब इससे भी पेट नहीं भर पाता है ,
तब वो संसद भवन चला जाता है ,
वहा जाकर अपना शोक जताता है ,
फिर वहा से नेताओ का झुड लाता है ,
गरीबो को धेला देकरके ,
बाकी सारा पैसा मिलबाटकर खाता है |

इस तरह वो समाज में गन्दगी फैलाता है ,
पुलिस और जनता दोनों को डराता है ,
दुसरो पर सांप्रदायिकता का इल्जाम लगता है ,
और थोड़े ही दिन बाद ये नेता ,
बेशर्मो की तरह वोट मांगने चला आता है |

गिद्ध तो बहुत अच्छे है साहब !
ये तो राक्षसों और सियारों के प्रजाति से आता है |


डॉ सुनिल अग्रवाल










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