जब मै था अकेला ,
था बड़ा ही अलबेला ,
दोस्तों का था काफिला ,
और मौज मस्ती का था रेला |
तब न होता था सबेरा ,
महफ़िल थी रैन बसेरा ,
पर जब किस्मत का चला फेरा ,
पीछे छुट गया वो डेरा |
दोस्तों से हुआ मै दूर ,
बादशाह से बना मजदुर ,
हुआ मुझसे था एक कसूर ,
शादी का चढ़ा जब सुरूर |
शादी जो मैंने करली ,
मुसीबत से जिंदगी भरली ,
गर्दन भी उसने धरली ,
सुख शांति मेरी हरली |
बंधन था ये अनोखा ,
इसमें थी वो मलिका ,
मुझे सिर्फ चाकरी का मौका ,
कैसा किस्मत ने दिया धोका ?
पालतू बन गया अब जंगल का शेर ,
कंगाल हो गया अब घर का कुबेर ,
गर दोस्तों की महफ़िल में होजाये देर ,
तो अब करनी पड़ती है जहनुम की सेर |
मै बात भी करू तो है वो अत्याचार ,
वो गाली भी दे तो समझू मै प्यार ,
सचमें शादी के बाद जिंदगी है दुश्वार ,
पति बनने के पहले सोचना दो बार |
डॉ सुनील अग्रवाल