indiblogger member

Saturday 24 August 2013

यात्रा यानि मस्ती टाइम

 
   

       यात्रा एक सुखद अनुभव है | ये हम पर निर्भर करता है की यात्रा के दौरान हम आपनी खुशिया कैसे बटोरे |  हर जगह अपने आप में मनमोहक होती है और खासकर  छुटटीया बिताने के लिए तो सभी अपने आप में खुबसूरत और लुभावनी होती है ,  पर फिर भी सभी के दिल को ख़ुशी से सरोबोर करना चाहते हो तो कुछ बातो का ध्यान रखना  जरुरी होता है |
       छुटटीया आप किसके साथ बिता रहे हो ये बात आपका गनतव्य निर्धारित करने के लिए जरुरी होता है , जैसे की अगर आप के साथ बच्चे या बुजुर्ग है तो इस बात का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है की छोटे बोर ना हो और उम्रदराज व्यक्तियों को सेहत या घुमने फिरने में दिक्कत ना हो | 
      इसके बाद जो भी घुमने जा रहे है उन सभी का आपस में बराबर का तालमेल हो, पसंद मिलतीजुलती हो ताकि समन्वय बनाये रकने में आसानी होगी अगर सान्शिपत में कहु तो ' Birds of same feather flock together'.  सबकी आर्थिक परिस्थिति का भी उचित ध्यान  रखा जाए तो यात्रा का मजा दुगना हो जायेगा, हा इसके लिए सभी को थोडा थोडा एडजस्ट करना पड़ता है |
      एक बार जगह और हमसफ़र हमने तय कर लिए तो बस अब तयारिया शुरू कर देनी चाहिये जैसे की दवाइया, थोडा बहोत खानेपीने का सामान, यात्रा की टिकेट, आइडेंटिटी कार्ड , रोजमर्जा की चीजे, इत्त्यादी | सबसे जयादा जरुरी बात है हम अपने कारोबार के टेंशन को साथ न ले जाये अगर ऐसा नहीं किया तो आप तो परेशान रहगे ही पर सहचारी भी खीज जायगे |
      प्रकृति किसे अच्छी नहीं लगती अगर मुझे अपने परिजनों एवं मित्रो के साथ जाने को कहा जाये तो में भारत  का जन्नत यानि की कश्मीर भ्रमण करना चाहुगा | वहा सुन्दरता हर वक़्त अपने चरम सीमा पर होती है, बर्फ से लदे पर्वत, नदियों में बहता शुभ्र जल, हरयाली से आच्छादित कोसो फैले मैदान, लुभावना मौसम ऐसा लगता है जैसे किसी स्वर्गलोक में हम विचरण कर रहे हो | यहाँ पर सभी उम्र के व्यक्ति आनंद उठा सकते है | यहाँ की गंडोला सहर अपने आप में एक अलग अनुभूति है, दुनिया का सबसे उचे गंडोला में बैठकर आसमान छुने का एहसास होता है | अंत में मै इतना ही कहना चाहुगा -  http://www.yatra.com/ 

 मस्ती के वो दिन थे,
             मॊज भरी वो राते,
    सफ़र की शुरुआत थी,
                        अब होगी नयी मुलाकाते |
                भुला चूका था रॊज का दुखड़ा,
                       दिनचर्या का रोता मुखड़ा,
                  अब नहीं था मुझको कोई टेंशन,
                     चार दिन का था ये पेंशन,
         हँसी खुशी से इसे बिताये,
                       आओ हम सब मजे उडाए | 


No comments: