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Tuesday, 20 August 2013

बचपन



जब भी याद आते हो,
   बहूत रुलाते हो तुम,
दूर जाते देखकर भी,
   ना बुलाते हो तुम I
याद नही कितने अज़ीज थे
   हम कभी एक दूसरे के,
अब तो सामने खड़े होकर भी
   भुलाते हो मुझेI
आज भी तुम मुझे-
   कभी खिलोने से दीखाई देते हो,
   कभी मा के दुलार से प्रतीत होते हो,
   कभी आसू की तरह झर जाते हो,
   कभी ज़िद की तरह अड़ जाते हो,
कभी अमराई के झूलो पर झूलते देखा था तुम्हे,
कभी अनभीग्येता और भोलेपन सा निहारा था तुम्हे,
कभी बंदर की सी मस्ती मे पाया था तुम्हे,
कभी हिरनी की सपूर्ती मे जाना था तुम्हे I
पर अब तो सुनहरे सपने की बिखरी हुई शेष
                    किरण हो तुम,
पर जब भी याद आते हो बहूत रुलाते हो तुम,
हाय ! मेरे बचपन के दिन क्यो मुझे भुलाते हो तुम I

By-
Dr Sunil Agrawal


2 comments:

Unknown said...

(y)

suraj mahant said...

very nicely written , great stuuf