मै एक ऐसी कहानी हू,
जो सबकी जानी पहचानी हू,
झुल्फ मेरी उम्मिदो की बनी है,
जो हर हवा के झोके से बिखर जाती है,
बिन्दिया के नाम पर रोज,
लहू के छीटे माथे पर उड़ जाते है,
होटो की लाली की जगह,
भूख की ताज़गी हर समय नज़र आती है,
आखो के झरोको मे,
भय और आतंक का तांडव दिखाई देता है,
खिलखिलाकर आती हसी की बजाए,
मौन खड़े सन्नाटे की अहाट आती है,
ओडनी के चंद धागो को छोड़कर,
बची हुई लाज गिधो के पंजो मे नज़र आती है,
पक्समो पर बसी हुई झुरिया ही,
मेरी जवानी की बची हुई अमानत है,
सर पर सफेद होते बाल ही,
मेरे बडनेकी निशानी है,
अगर अब भी समझ न पाए तो,
कुछ आसू बहा देना,
और इस अभागन को,
ग़रीबी कहकर गले लगा लेनाII I
By-
Dr Sunil Agrawal
2 comments:
Speechless!!!!! UToo gud !!
Spell Bound !! a thoughtful composition indeed !
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